राज्य सरकार को झटका, Jharkhand में स्थानीय युवाओं के लिए निजी कंपनियों में 75% आरक्षण लागू करने वाले कानून पर झारखंड हाईकोर्ट ने अस्थायी रोक लगा दी है।
यह फैसला बुधवार को मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति दीपक रोशन की खंडपीठ ने झारखंड स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया।
High Court ने जताई संवैधानिक चिंताएं
याचिकाकर्ता के वकीलों ने अदालत में तर्क दिया कि राज्य सरकार द्वारा पारित ‘झारखंड स्टेट एंप्लॉयमेंट ऑफ लोकल कैंडिडेट इन प्राइवेट सेक्टर कंपनी एक्ट, 2021’ संविधान के तहत दिए गए समानता के अधिकार और व्यवसाय की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। वकीलों ने कहा कि इस कानून से न केवल उद्योगों को नुकसान होगा, बल्कि यह भेदभावकारी भी है। इसके अलावा, उन्होंने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्ववर्ती फैसले का हवाला दिया, जिसमें हरियाणा सरकार के इसी तरह के कानून को खारिज किया गया था।
खंडपीठ ने दलीलें सुनने के बाद कहा कि इस तरह के मामले में पहले ही पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट से निर्णय आ चुका है। कोर्ट ने झारखंड सरकार को नोटिस जारी करते हुए मामले में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 20 मार्च को निर्धारित की गई है।
कानून का उद्देश्य और प्रावधान
Jharkhand Govt. ने 2021 में यह कानून लागू किया था, जिसका उद्देश्य राज्य के स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करना था। इसके तहत निजी कंपनियों, फैक्ट्रियों और औद्योगिक इकाइयों में 40,000 रुपये मासिक वेतन तक की नौकरियों में 75% पद स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित किए गए थे। राज्य सरकार ने इस कानून को झारखंड के बेरोजगार युवाओं की आर्थिक स्थिति सुधारने और राज्य में पलायन रोकने के लिए एक क्रांतिकारी कदम बताया था।
उद्योग जगत का विरोध
झारखंड स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन और अन्य औद्योगिक संगठनों ने इस कानून का कड़ा विरोध किया। उनका कहना है कि यह प्रावधान उद्योगों के संचालन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। एसोसिएशन के वकीलों अमित कुमार दास, शिवम उत्कर्ष सहाय और संकल्प गोस्वामी ने अदालत में कहा कि कानून से राज्य में निवेश का माहौल खराब होगा और उद्यमी यहां उद्योग स्थापित करने से कतराएंगे।
उद्योग जगत का मानना है कि किसी भी राज्य में निवेश और रोजगार बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्धात्मक माहौल होना जरूरी है। इस तरह के आरक्षण से कंपनियों के लिए योग्य और कुशल कर्मचारियों को नियुक्त करना मुश्किल हो सकता है, जिससे उनकी उत्पादकता पर असर पड़ेगा।
पंजाब-हरियाणा के फैसले का प्रभाव
झारखंड हाईकोर्ट के फैसले में विशेष रूप से हरियाणा सरकार के कानून का उल्लेख किया गया, जिसे पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने असंवैधानिक ठहराया था। हरियाणा सरकार ने भी 75% आरक्षण का कानून लागू किया था, लेकिन कोर्ट ने इसे समानता के अधिकार और व्यवसाय की स्वतंत्रता के विपरीत पाया। झारखंड हाईकोर्ट ने इस फैसले को आधार बनाते हुए राज्य सरकार के कानून पर रोक लगाई है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
इस फैसले के बाद झारखंड सरकार को बड़ा झटका लगा है। राज्य सरकार ने इस कानून को अपनी उपलब्धि बताया था और इसे झारखंडी युवाओं के लिए रोजगार सृजन का महत्वपूर्ण कदम बताया था। विपक्षी दलों ने सरकार की आलोचना करते हुए इसे कानूनी और आर्थिक दृष्टिकोण से कमजोर नीति करार दिया।
वहीं, स्थानीय युवा समूह और सामाजिक संगठनों ने हाईकोर्ट के फैसले पर नाराजगी जताई। उनका कहना है कि यह कानून राज्य के युवाओं के लिए रोजगार की गारंटी देता था, और इसे रोकने से स्थानीय लोगों के हित प्रभावित होंगे।
अगले कदम पर नजर
झारखंड हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद सरकार को अब अपनी दलीलें मजबूत करनी होंगी। मामले की अगली सुनवाई 20 मार्च को होगी, और तब तक यह देखना होगा कि सरकार इस कानून को बचाने के लिए क्या तर्क प्रस्तुत करती है।
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