9 December को बेंगलुरु में 34 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर Atul Subhash ने आत्महत्या कर ली। उनके द्वारा छोड़े गए 24 पन्नों के सुसाइड नोट ने उनकी पत्नी और ससुराल पक्ष पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इस दर्दनाक घटना ने पूरे शहर में हलचल मचा दी है।
Atul Subhash की पत्नी निकिता सिंघानिया के परिवार ने इस मामले में चुप्पी तोड़ते हुए कहा है, “हम उस घटना के लिए दोषी नहीं हैं। हम जल्द ही सभी सबूत पेश करेंगे। हमने कुछ भी गलत नहीं किया है। हम अतुल की मौत पर गहरा खेद व्यक्त करते हैं।” CNN-News18 के अनुसार, यह बयान दिया गया।
घटना का विवरण
Police Report के अनुसार, अतुल सुभाष का शव बेंगलुरु के मंजूनाथ लेआउट क्षेत्र में उनके घर में फांसी पर लटका पाया गया। जिस कमरे में उन्होंने अपनी जान दी, वहां “न्याय की आवश्यकता है” लिखा हुआ एक प्लेकार्ड भी मिला।
अतुल के भाई बिकास कुमार की शिकायत पर मराठाहल्ली पुलिस स्टेशन में चार लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। इसमें उनकी पत्नी निकिता सिंघानिया, सास निशा सिंघानिया, पत्नी के भाई अनुराग सिंघानिया और चाचा सुषील सिंघानिया का नाम शामिल है।
एफआईआर में आरोप
एफआईआर भारतीय दंड संहिता की धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाने) और धारा 3(5) (साझा आपराधिक मंशा के तहत कार्रवाई) के तहत दर्ज की गई है। अतुल ने अपने सुसाइड नोट में पत्नी और ससुराल पक्ष पर मानसिक उत्पीड़न और झूठे केस दर्ज कराने का आरोप लगाया है।
पिता का बयान: “न्यायपालिका ने भी निराश किया”
Atul Subhash के पिता पवन कुमार ने ANI को दिए एक बयान में कहा, “अतुल को अपनी पत्नी द्वारा दर्ज किए गए केसों के कारण बेंगलुरु से जौनपुर लगभग 40 बार यात्रा करनी पड़ी। वह कहते थे कि मध्यस्थता कोर्ट कानून और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार काम नहीं करते। उनकी पत्नी ने एक के बाद एक आरोप लगाए, जिससे वह मानसिक रूप से परेशान हो गए।”
पवन कुमार ने यह भी बताया कि अतुल ने कभी अपनी परेशानियों का भार परिवार पर नहीं आने दिया। “वह जरूर तनाव में थे, लेकिन हमें कभी महसूस नहीं होने दिया,” उन्होंने कहा।
न्याय की मांग
Atul Subhash के परिवार ने उनके सुसाइड नोट को न्याय की गुहार के रूप में देखा है और प्रशासन से मांग की है कि मामले की निष्पक्ष जांच हो। परिवार का कहना है कि यह केवल व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि न्यायपालिका और समाज की खामियों का प्रतिबिंब भी है।
घटना ने उठाए सवाल
इस घटना ने दहेज उत्पीड़न और झूठे मामलों के बढ़ते मुद्दों पर भी सवाल खड़े किए हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों का मानना है कि मानसिक स्वास्थ्य और कानूनी प्रक्रियाओं में सुधार की आवश्यकता है। साथ ही, परिवारिक विवादों को सुलझाने में तटस्थता और संवेदनशीलता का पालन किया जाना चाहिए।